धमतरी: ‘जल जागर’ के बीच ‘रेत लूट’ की लहर, सेमरा बी में महीनो से चल रहा रेत का अवैध परिवहन, जिम्मेदारों पर उठे सवाल

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कुरूद | जब प्रशासन ‘जल जागर’ जैसे अभियानों से जल संरक्षण का संदेश दे रहा हो, तब अगर उसी जिले के गांव में रेत माफिया खारुन नदी की छाती चीर रहे हों, तो यह सवाल उठना लाज़मी है — कौन हैं वो लोग जो सरकारी संकल्पों को ज़मीनी स्तर पर तार-तार कर रहे हैं?

धमतरी जिले के ग्राम सेमरा बी में हो रहा अवैध रेत खनन अब किसी रहस्य की बात नहीं रही। ग्रामीणों की शिकायतें, घटता भूजल स्तर और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के बयान — सब एक बेहद गंभीर पर्यावरणीय और प्रशासनिक विफलता की ओर इशारा कर रहे हैं।


खारुन नदी पर रेत माफियाओं का कब्ज़ा

कभी जीवनदायिनी कही जाने वाली खारुन नदी अब धीरे-धीरे दम तोड़ रही है। नदी से हो रही रेत की अंधाधुंध खुदाई ने न केवल इसके प्रवाह को बाधित किया है, बल्कि गाँव के भूगर्भीय जल स्तर को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। रेत केवल नदी की सतह नहीं होती — यह उसकी आत्मा होती है। यही रेत जलधारण, पुनर्भरण और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखने में भूमिका निभाती है। लेकिन अब यही रेत पैसों के लालच में लूटी जा रही है।

ग्रामीण का बयान सुने:-


ग्रामवासियों को बहलाकर, खदान बेच दी गई!

ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें पहले यह कहकर गाँववालों को बहलाया कि रेत सिर्फ़ प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी ग्रामीण योजनाओं के निर्माण कार्यों के लिए निकाली जाएगी।लेकिन इसके बाद खदान को ₹5 लाख में एक ठेकेदार को सौंप दिया गया, जो अब खुलेआम रेत का अवैध परिवहन कर रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि इस ठेकेदार द्वारा प्रत्येक ट्रैक्टर पर ₹500 की अवैध वसूली की जा रही है — और यह सिलसिला पिछले एक महीने से भी अधिक समय से जारी है। रोज़ाना 80-100 ट्रिप रेत दोनों ओर से निकली जा रही है। यह न केवल राजस्व चोरी का मामला है, बल्कि ग्रामीणों की विश्वासभावना और सरकारी योजनाओं के नाम पर छल का उदाहरण भी।


भूजल संकट: 40 फीट से 70 फीट के पार सूखा

गांव के बुजुर्गों और किसान परिवारों के अनुसार, पहले 40 फीट पर ही पानी उपलब्ध हो जाता था, लेकिन अब 70 फीट से भी नीचे पानी नहीं मिल रहा। ग्रामीणों का कहना है कि यह परिवर्तन रेत खनन के कारण हुआ है। रेत की परतें जो जल-संचयन में मदद करती थीं, अब हटाए जाने के कारण भूजल रिचार्ज की प्राकृतिक प्रक्रिया नष्ट हो गई है।


पूर्व सरपंच की स्वीकारोक्ति ने खोले राज

ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच कन्हैय्या साहू ने चौंकाने वाली जानकारी देते हुए बताया कि एक बैठक में तय किया गया था कि कोई भी अवैध रेत खनन करेगा तो उस पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया जाएगा, और सूचना देने वाले को ₹1,000 इनाम मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि गांव में यह चर्चा आम है कि वर्तमान सरपंच ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि खदान सौंप दी गई है। अब जब मामला गर्माया है, तो बयान बदल दिए जा रहे हैं।

पूर्व सरपंच कन्हैय्या साहू का बयान :-


जनपद सदस्य ने पूछा: “खनिज विभाग की अनुमति कहाँ है?”

इस पूरे प्रकरण के बारे में जनपद सदस्य बनिता प्रमोद सिन्हा से जानना चाहा तो उन्होंने बताया की जनपद पंचायत सभा में जब इसके बारे में सवाल पूछा तो जनपद पंचायत कुरूद के उपाध्यक्ष द्वारा जवाब दिया गया की उपरोक्त खदान वैध है जिसे ग्राम पंचायत द्वारा ठेकेदार को 4.60 लाख में बेचा गया है। जनपद सदस्य बनिता प्रमोद सिन्हा ने स्पष्ट रूप से कहा की रेत परिवहन और खनन के लिए अनुमति खनिज विभाग द्वारा जारी किया जा सकता है इसके लिए सरपंच के पास कोई अधिकार नहीं होता |

जनपद सदस्य बनिता प्रमोद सिन्हा:-


सरपंच का बयान: “मैंने किसी को अनुमति नहीं दी”

जब अरपा न्यूज़ ने वर्तमान सरपंच श्रीमती दुर्गा सिन्हा से सीधे सवाल किया, तो उन्होंने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा हमारे द्वारा किसी भी व्यक्ति को खदान नहीं बेचा गया है, जो लोग रेत का परिवहन कर रहे थे उन्हें 2 बार बंद करवाया गया है। उन्होंने आगे पूछने पर इस बारे में बात करने से इंकार कर दिया। हालांकि, पूर्व सरपंच, जनपद उपाध्यक्ष और ग्रामीणों के आरोपों के मुकाबले यह बयान विरोधाभासी नज़र आता है। पहले स्वीकृति, फिर इनकार — यह विरोधाभास भूमिका को संदेहास्पद बनाता है।

श्रीमती दुर्गा सिन्हा, सरपंच (सेमरा बी) :-


गाँव में उठी माँग: निष्पक्ष जांच हो, दोषियों पर कार्रवाई हो

ग्राम सेमरा बी के नागरिक अब एक स्वर में मांग कर रहे हैं कि राजस्व विभाग, खनिज विभाग और जिला प्रशासन इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करे और दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। यह सिर्फ़ एक पंचायत स्तर का मामला नहीं — यह एक नदी, एक पीढ़ी और पूरे पर्यावरण के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है।

जब जिला प्रशासन ‘जल जागर’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से जल संरक्षण का आह्वान कर रहा है, तब स्थानीय स्तर पर महानदी, खारुन जैसी नदियों की लूट प्रशासनिक संकल्पों की पोल खोलती है।

क्या इस मामले में प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्यवाही होगी या राजनितिक दबाव के चलते यह मामला भी कागजों में दब जाएगा?
या खारुन को मिलेगा न्याय?

खारुन नदी की सूखती धारा, सिर्फ़ पानी का सूखना नहीं है — यह सिस्टम की असफलता की मौन चीख है।

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Author: Arpa News 36