कुरुद । बसंत फाउंडेशन कला प्रतिभा परीक्षा में इस बार 12 प्रतिभाशाली बच्चों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। ये परीक्षा खैरागढ़ स्थित इंदिरा गांधी संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में आयोजित की गई थी। फाउंडेशन के बच्चों ने न केवल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि कला साधना में अपनी सृजनशीलता का भी प्रमाण दिया।
बसंत फाउंडेशन कला प्रतिभा परीक्षा: एक साधना, एक दिशा
बसंत फाउंडेशन कला प्रतिभा परीक्षा में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को क्षेत्रवासियों ने ढेरों शुभकामनाएं दीं। उनका कहना था कि ये बच्चे केवल रंगों से नहीं, अपने सपनों और संघर्षों से भी जीवन को सजाने निकले हैं। यह आयोजन बच्चों की कला प्रतिभा को निखारने और उन्हें मंच प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
चित्रकार बसंत साहू का दर्शन: कला केवल कौशल नहीं, एक सामाजिक उत्तरदायित्व
बसंत फाउंडेशन के संस्थापक और प्रसिद्ध चित्रकार बसंत साहू ने कहा, “कला एक साधना है और साधक वही है जो अपने सृजन से समाज को रोशन करे।” उनका यह दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि फाउंडेशन बच्चों को केवल पेंटिंग या स्केचिंग सिखाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार और जागरूक कलाकार बनने की प्रेरणा दी जाती है।
फाउंडेशन की सोच: कला में नैतिकता और समाज सेवा का समावेश
बसंत फाउंडेशन की सोच यह है कि कलाकार समाज के आईने होते हैं। उनके कार्यों में विचार, संवेदना और समाज के प्रति प्रतिबद्धता झलकनी चाहिए। यही कारण है कि बसंत फाउंडेशन कला प्रतिभा परीक्षा जैसे आयोजनों के ज़रिए बच्चों को आत्मविश्वास और सामाजिक समझ दोनों दी जाती हैं।
इंदिरा गांधी संगीत एवं कला विश्वविद्यालय का योगदान
इस प्रतिष्ठित परीक्षा का आयोजन खैरागढ़ स्थित इंदिरा गांधी संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में हुआ, जो भारत के कला और संगीत शिक्षा के प्रमुख संस्थानों में से एक है। यह मंच उन छात्रों के लिए सुनहरा अवसर है जो कला में करियर बनाना चाहते हैं।
शुभकामनाएं और समर्थन
छात्रों की सफलता के लिए पूरे क्षेत्र ने शुभकामनाएं दीं। स्थानीय नागरिकों ने कहा कि इन बच्चों ने कला को अपनी पहचान बनाया है, और उनकी मेहनत निश्चित ही रंग लाएगी। संस्थापक बसंत साहू ने बच्चों को “देश के रंग बनने” की शुभकामना दी।
बसंत फाउंडेशन कला प्रतिभा परीक्षा के माध्यम से बच्चों ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची लगन, मार्गदर्शन और मंच मिले तो प्रतिभा किसी भी क्षेत्र से उभर सकती है। ऐसे आयोजन न केवल कला को पोषित करते हैं, बल्कि समाज में सृजनात्मकता और संस्कार का बीजारोपण भी करते हैं।
