धमतरी । धमतरी जिले के सुदूर वनांचलों में निवासरत कमार जनजाति में बांस आधारित आजीविका को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा धरती आबा ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान का उद्देश्य न केवल बांस की खेती को प्रोत्साहित करना है, बल्कि कमार जनजाति को बांस कला में प्रशिक्षित कर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना भी है।
इस पहल के तहत जनजातीय परिवारों को बांस की आधुनिक खेती सिखाई जाएगी, साथ ही बांस शिल्प जैसे फर्नीचर, सजावटी और घरेलू वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। यह योजना विशेष रूप से जिले के गंगरेल और तुमराबाहरा क्षेत्रों में प्रभावी रूप से लागू की जा रही है।
बांस से बने उत्पाद और प्रशिक्षण की योजना
कलेक्टर अविनाश मिश्रा के अनुसार, कमार जनजाति में बांस आधारित आजीविका को एक सतत विकास मॉडल के रूप में लागू किया जाएगा। प्रशिक्षण में निम्नलिखित शिल्प को शामिल किया गया है:
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बांस से फर्नीचर
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लैम्प, पेन स्टैंड और बांस की ज्वेलरी
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झाडू, सूपा, झोवा और पानी की बोतलें
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आधुनिक सजावटी और घरेलू उत्पाद
इसके अतिरिक्त, उत्पादों की बिक्री और विपणन के लिए स्थानीय तथा राष्ट्रीय बाजारों से जुड़ाव की व्यवस्था की जा रही है।
आर्थिक विकास की ओर बढ़ते कदम
बांस के उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए प्रशासन ने कमार जनजाति में बांस आधारित आजीविका को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए निम्नलिखित प्रयास शुरू किए हैं:
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बांबू ब्लेज़ और बैम्बू एफपीओ की स्थापना
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बांबू क्रेडिट कार्ड के माध्यम से वित्तीय सहायता
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महाराष्ट्र के चंद्रपुर स्थित बांस कला केंद्र में 20 से अधिक कारीगरों को भेजने की योजना
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निर्माता-क्रेता-विक्रेता मीटिंग्स का आयोजन
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संसाधन और पर्यावरण संरक्षण का मेल
बांस केवल एक आय का साधन नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी एक महत्वपूर्ण कारक है। कमार जनजाति में बांस आधारित आजीविका उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगी और उनके पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक बाजार से जोड़ेगी। यह पहल भारत सरकार के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप भी है।
कलेक्टर का संदेश
कलेक्टर अविनाश मिश्रा ने इस अभियान को जनजातीय सशक्तिकरण का माध्यम बताया और कहा, “बांस की खेती और बांस शिल्प के माध्यम से कमार जनजाति के जीवन स्तर में ठोस बदलाव आएगा।”
कमार जनजाति में बांस आधारित आजीविका एक मजबूत और टिकाऊ भविष्य की दिशा में उठाया गया ठोस कदम है। इस पहल से न केवल आर्थिक मजबूती मिलेगी, बल्कि कमार जनजाति की सांस्कृतिक विरासत और जीवनशैली को भी नया आयाम मिलेगा। आवश्यकता है इस अभियान को निरंतर गति देने और जनजातीय समुदाय को प्रेरित करने की।
