कुरुद के कृष्णसखा पूजा स्थल चर्रा में जन्माष्टमी उत्सव धूमधाम से संपन्न

कुरुद । कुरुद के कृष्णसखा पूजा स्थल चर्रा में जन्माष्टमी उत्सव इस वर्ष बड़े ही धूमधाम और भक्तिभाव से मनाया गया। बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ और हजारों की संख्या में लोग भजन संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेने पहुँचे।

भजन संध्या में बंधा भक्तिमय समां

भजन संध्या में स्थानीय और क्षेत्रीय कलाकारों ने ऐसा भक्तिमय माहौल तैयार किया कि बरसते पानी में भी दर्शक तालियाँ बजाने से खुद को रोक नहीं सके।

  • कृपाराम यादव, उमेश बैस और उत्तम साहू ने कलाकारों का सम्मान श्रीफल और शॉल भेंट कर किया।

  • दाऊ मंदराजी सम्मान से पुरस्कृत प्रसिद्ध गायक एलपी गोस्वामी ने श्रीकृष्ण बाल लीला के प्रसंगों की प्रस्तुति दी और खूब सराहना बटोरी।

  • खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित एवं कुरुद स्वरांगन क्लासेस के शिक्षक चमन दास ने अपने स्वरचित गीतों की सुंदर प्रस्तुति दी।

मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण जन्म उत्सव

जैसे ही मध्य रात्रि का समय हुआ, पूरा पंडाल “जय श्रीकृष्ण” के जयकारों से गूंज उठा।

  • श्रीकृष्ण जन्म के उपलक्ष्य में सौहर गीत गाए गए।

  • दर्शकदीर्घा में बैठी महिलाओं ने भी मंडली के साथ स्वर मिलाया और माहौल और भी भक्तिमय बन गया।

दही हांडी और लोकनृत्य ने बढ़ाया उत्साह

जन्माष्टमी उत्सव की रौनक तभी पूरी होती है जब दही हांडी और राऊत नाचा जैसे पारंपरिक आयोजन हों।

  • युवाओं ने उत्साह से दही हांडी फोड़ी और दर्शकों ने जमकर हौसला बढ़ाया।

  • राऊत नाचा दोहा और संगीत ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

स्थानीय समाज का सहयोग और सहभागिता

इस आयोजन में प्रदीप यादव, रोशन ध्रुव, शिव निर्मलकर, जागेश्वर साहू, सोनू, सुखीराम साहू सहित सैकड़ों लोगों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

  • कृष्ण सखा परिवार और कुरुद नगर के नागरिकों ने मिलकर आयोजन को सफल बनाया।

  • यह उत्सव सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी रहा

कला और संगीत की झलक
  • मंच पर संगीतकारों और गायकों ने पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के भजनों से श्रोताओं को बांधे रखा।

  • दर्शकदीर्घा में बैठे बुजुर्ग, महिलाएँ और बच्चे सभी ने तालियों और जयकारों से कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।

कुरुद के कृष्णसखा पूजा स्थल चर्रा में जन्माष्टमी उत्सव ने यह साबित कर दिया कि भक्ति और आस्था के आगे मौसम की कोई बाधा नहीं होती। भजन संध्या, दही हांडी, सौहर गीत और राऊत नाचा जैसे कार्यक्रमों ने आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया। यह उत्सव न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक रहा।

Bharti Sahu
Author: Bharti Sahu