कुरुद । पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन साहित्य और हास्य-व्यंग्य की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। छत्तीसगढ़ सहित देशभर के कवि सम्मेलनों में अपनी धारदार हास्य कविताओं से लोगों को गुदगुदाने वाले डॉ. दुबे की यादें अब सिर्फ रचनाओं में ही रह जाएंगी। उनके निधन की खबर ने पूरे क्षेत्र को शोकाकुल कर दिया। हर वर्ष होली पर कुरुद में आयोजित कवि सम्मेलन में उपस्थिति देने वाले इस महान कवि को श्रद्धांजलि देने के लिए राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक और मीडिया संस्थानों ने एकजुट होकर उन्हें नमन किया।
विधायक अजय चंद्राकर ने दी श्रद्धांजलि
कुरुद विधायक एवं पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने रायपुर स्थित उनके निवास पहुंचकर शोक संतप्त परिजनों से मुलाकात की और संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा, “आज शब्द मौन हैं, व्यंग्य निर्वाक है और कविता शोकसागर में डूबी हुई है।” उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. दुबे ने छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और उनकी रचनाओं में समाज के यथार्थ की सच्ची झलक मिलती थी।
नगर में हुआ श्रद्धांजलि आयोजन
वन्देमातरम परिवार और नगर पंचायत कुरुद की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में डॉ. दुबे को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी गई। संस्था प्रमुख भानु चंद्राकर ने बताया कि “डॉ. सुरेंद्र दुबे हमारे संस्था के आजीवन सदस्य थे और लगातार 20 वर्षों तक कुरुद की जनता को अपने व्यंग्य से हंसाया।” वे कहते हैं, “पिछली होली पर उन्होंने रजत जयंती वर्ष मनाने का वादा किया था लेकिन अब वो अधूरा रह गया।”
नगर पंचायत अध्यक्ष ज्योति चंद्राकर ने भावुक होते हुए कहा कि “वे केवल नगर के नहीं, हमारे घर के भी सदस्य थे। वे जहां होते, वहां मुस्कान होती थी।”
प्रेस क्लब और साहित्यिक जगत की श्रद्धांजलि
कुरुद प्रेस क्लब द्वारा आयोजित शोकसभा में संरक्षक कृपाराम यादव ने कहा कि “उनकी रचनाएं तालियों के साथ सोच भी देती थीं।” उन्होंने डॉ. दुबे के निधन को छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक चेतना के लिए एक गंभीर क्षति बताया। सभा में उपस्थित सभी पत्रकारों और साहित्यप्रेमियों ने दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति के संवाहक
पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन केवल एक साहित्यकार का जाना नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति और हास्य की आत्मा का एक अंश खो देना है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज को आईना दिखाया, बिना कटाक्ष के तीखे सवाल उठाए और आम आदमी की पीड़ा को मुस्कान में ढाला।
उनकी रचनाएं विभिन्न मंचों पर वर्षों तक गूंजती रहीं, चाहे वह दूरदर्शन हो, आकाशवाणी हो या अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन। उन्होंने छत्तीसगढ़ की पहचान को साहित्य के माध्यम से वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।
पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन न केवल एक कवि का अंत है, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत में एक गहरी दरार है। उनका योगदान, उनका हास्य, उनका व्यंग्य और सामाजिक दृष्टि आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देती रहेगी। वे साहित्यिक इतिहास में अमर रहेंगे। हम सबको उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
