रायपुर । छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश की कविता मंचों पर अपनी विशिष्ट हास्य शैली से पहचान बनाने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे अब हमारे बीच नहीं रहे। हार्ट अटैक के बाद उन्हें रायपुर के एसीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उपचार के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की जानकारी परिवार के करीबी सूत्रों ने दी। उनके जाने से हास्य कविता के मंचों पर सन्नाटा छा गया है।
बहुआयामी व्यक्तित्व, जिसने हँसी में पिरोया गहरा संदेश
8 अगस्त 1953 को बेमेतरा में जन्मे डॉ. सुरेंद्र दुबे केवल कवि ही नहीं थे, बल्कि लेखक, मंच संचालक और प्रेरक वक्ता भी थे। उन्होंने अपनी हास्य शैली में जीवन के गंभीर पहलुओं को छूने की कला में महारत हासिल की थी। उन्होंने पांच किताबें लिखीं और देश-विदेश के अनेक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
मिला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान
वर्ष 2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। वहीं अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में 2019 में उन्हें “हास्य शिरोमणि” सम्मान भी मिला। उनकी रचनाएं हमेशा पाठकों और श्रोताओं के चेहरों पर मुस्कान लाती रहीं।
साहित्य जगत में गहरा शोक
उनके निधन की खबर फैलते ही साहित्य और कविता प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर कवि, लेखक, कलाकार और प्रशंसक उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। कई नामचीन कवियों और साहित्यकारों ने इसे हिंदी हास्य कविता की अपूरणीय क्षति बताया है।
आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
डॉ. सुरेंद्र दुबे की रचनाएं और मंचीय प्रस्तुतियां हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी। उन्होंने हास्य के माध्यम से समाज को जो संदेश दिए, वो आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा जीवित रहेंगे।
