बिलासपुर : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने प्राचार्य पदोन्नति के मामले में सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई तक पदोन्नति सूची जारी करने पर रोक लगा दी है। इस महत्वपूर्ण याचिका पर मुख्य न्यायाधीश रमेश सिंहा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ में सुनवाई हुई। अगली सुनवाई की तारीख 16 अप्रैल 2025 निर्धारित की गई है।
क्या है पूरा मामला?
इस याचिका में प्राचार्य पदोन्नति के लिए बी.एड. डिग्री को अनिवार्य करने के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार त्रिपाठी की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पेश कीं, जबकि इंटरविनर की ओर से अधिवक्ता आलोक बख्शी ने अपना पक्ष रखा। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत ठाकुर ने शासन का पक्ष रखा।
शिक्षकों में नाराजगी
पदोन्नति प्रक्रिया में देरी से शिक्षकों में नाराजगी बढ़ रही है। प्राचार्य पदोन्नति फोरम के पदाधिकारियों अनिल शुक्ला, राकेश शर्मा, श्याम कुमार वर्मा और रमाकांत झा ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि प्रशासनिक ढिलाई के कारण कई शिक्षक, जो जनवरी से अप्रैल के बीच रिटायर हो रहे हैं, पदोन्नति से वंचित रह जाएंगे।
फोरम के अनुसार, पदोन्नति प्रक्रिया पहले से ही धीमी गति से चल रही थी, और अब न्यायालय के निर्देश से यह प्रक्रिया और लंबी खिंच सकती है। शिक्षकों का कहना है कि अगर समय रहते प्रमोशन नहीं हुआ, तो योग्य उम्मीदवार बिना लाभ के ही सेवा निवृत्त हो जाएंगे।
क्या कहते हैं पक्षकार?
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याचिकाकर्ता: बी.एड. को अनिवार्य करने से अनुभवी शिक्षकों की पदोन्नति रुक जाएगी।
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शासन: बी.एड. की अनिवार्यता शिक्षकों की गुणवत्ता सुधारने के लिए जरूरी है।
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अदालत: सभी पक्षों को अपना उत्तर प्रस्तुत करने का निर्देश, 16 अप्रैल को अगली सुनवाई।
आगे की राह
अब 16 अप्रैल 2025 को अगली सुनवाई होगी, जिसमें इस मामले पर विस्तृत बहस होगी। तब तक पदोन्नति सूची जारी करने पर रोक जारी रहेगी। इस फैसले से प्रभावित शिक्षकों की नजरें हाईकोर्ट के आगामी फैसले पर टिकी हैं, क्योंकि यह मामला न सिर्फ उनके करियर बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और पारदर्शिता से भी जुड़ा है।
