“सोचते-सोचते थम गई ज़िंदगी? जानिए Decision Paralysis क्या है और कैसे बचें इस मानसिक जाल से!”

मुंबई । क्या आपने कभी किसी रेस्टोरेंट में मेनू देखकर खुद को उलझन में पाया है? हर डिश इतनी लज़ीज़ लगती है कि समझ ही नहीं आता क्या ऑर्डर करें। अगर हां, तो हो सकता है आप Decision Paralysis का सामना कर रहे हों। यह कोई मामूली परेशानी नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन से लेकर बड़े फैसलों तक पर असर डाल सकती है।

क्या होता है Decision Paralysis?

Decision Paralysis यानी निर्णय पक्षाघात—एक ऐसी स्थिति जिसमें विकल्प इतने ज़्यादा होते हैं कि व्यक्ति निर्णय नहीं ले पाता। ये केवल खाने या शॉपिंग तक सीमित नहीं है। करियर का चुनाव हो, रिश्तों से जुड़ा कोई अहम फैसला हो या फिर ज़िंदगी की दिशा तय करनी हो—ये कशमकश आपके कदम रोक सकती है।

क्यों होता है ऐसा?
  • विकल्पों की भरमार: जितने ज़्यादा विकल्प, उतनी ज़्यादा उलझन।

  • गलती का डर: “अगर गलत फैसला हो गया तो?” यही सोच ठिठका देती है।

  • परफेक्शनिज़्म: कुछ लोग सिर्फ “परफेक्ट” चाहते हैं, जो उन्हें आगे बढ़ने नहीं देता।

  • दूसरों की राय: हर किसी की बात सुनते-सुनते अपने दिल की आवाज़ दब जाती है।

कैसे पहचानें कि आप इसके शिकार हैं?
  • फैसले लेने में बहुत समय लगना

  • बार-बार राय बदलना

  • हर छोटे-बड़े फैसले के बाद पछताना

  • अनावश्यक तनाव और चिंता

 इससे कैसे बचा जा सकता है?

  1. विकल्प सीमित करें: हर चीज़ की तुलना न करें, 2–3 विकल्प रखें।

  2. प्राथमिकता तय करें: आपको क्या ज़रूरी है, वही सोचें।

  3. “परफेक्ट” नहीं, “सही” चुनें: जीवन में परफेक्शन ज़रूरी नहीं, संतुलन ज़रूरी है।

  4. समय-सीमा तय करें: हर फैसले के लिए डेडलाइन रखें।

  5. खुद पर भरोसा करें: आप जो सोचते हैं, वो सबसे अच्छा हो सकता है।

निष्कर्ष

आज के दौर में जहां हर चीज़ के सैकड़ों विकल्प हैं, वहां Decision Paralysis आम होता जा रहा है। लेकिन इससे निकलने का रास्ता है — सरल सोच, सीमित विकल्प और आत्मविश्वास। याद रखें, एक “अच्छा फैसला” लेने की हिम्मत “सही फैसले” की तलाश से कहीं ज़्यादा कारगर होती है।

Bharti Sahu
Author: Bharti Sahu